राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव Archives - REVOLT NEWS INDIA http://revoltnewsindia.com/tag/राष्ट्रीय-आदिवासी-नृत्य/ News for India Wed, 27 Oct 2021 08:42:07 +0000 en hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.2 http://revoltnewsindia.com/wp-content/uploads/2020/05/cropped-LLL-2-32x32.png राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव Archives - REVOLT NEWS INDIA http://revoltnewsindia.com/tag/राष्ट्रीय-आदिवासी-नृत्य/ 32 32 174330959 विशेष लेख : ‘राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव‘ : बैगा और माड़िया जनजाति के प्रमुख लोक नृत्य http://revoltnewsindia.com/special-article-national-tribal-dance-festival-major-folk-dances-of-baiga-and-madiya-tribes/4075/ http://revoltnewsindia.com/special-article-national-tribal-dance-festival-major-folk-dances-of-baiga-and-madiya-tribes/4075/#respond Wed, 27 Oct 2021 08:26:31 +0000 http://revoltnewsindia.com/?p=4075 रायपुर। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति, लोक गीत, नृत्य और संपूर्ण कलाओं से परिचित होगा देश और विदेश। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में यह आयोजन 28…

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रायपुर। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति, लोक गीत, नृत्य और संपूर्ण कलाओं से परिचित होगा देश और विदेश। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में यह आयोजन 28 से 30 अक्टूबर तक किया जा रहा है। राजधानी का साईंस कॉलेज मैदान आयोजन के लिए सज-धज कर तैयार हो चुका है। इस महोत्सव में विभिन्न राज्यों के आदिवासी लोक नर्तक दल के अलावा देश-विदेश के नर्तक दल भी अपनी प्रस्तुति देंगे।

छत्तीसगढ़ राज्य की 5 विशेष पिछड़ी जनजातियों में से एक बैगा जनजाति है। राज्य के कबीरधाम, मुंगेली, राजनांदगांव, बिलासपुर और कोरिया जिले में निवासरत है।

बैगा जनजाति अपने ईष्ट देव की स्तुति, तीज-त्यौहार, उत्सव एवं मनोरंजन की दृष्टि से विभिन्न लोकगीत एवं नृत्य का गायन समूह में करते हैं। इनके लोकगीत और नृत्य में करमा, रीना-सैला, ददरिया, बिहाव, फाग आदि प्रमुख हैं।

इसी प्रकार दण्डामी माड़िया जनजाति गोंड़ जनजाति की उपजाति है। सर डब्ल्यू. वी. ग्रिगसन ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ’द माड़िया जनजाति के सदस्यों द्वारा नृत्य के दौरान पहने जाने वाले गौर सिंग मुकुट के आधार पर ’बायसन हार्न माड़िया‘ जनजाति नाम दिया।

प्रसिद्ध मानव वैज्ञानिक वेरियर एल्विन का ग्रंथ ’द माड़िया-मर्डर एंड सुसाइड‘ (1941) दण्डामी माड़िया जनजाति पर आधारित है। बैगा और माड़िया जनजाति के रस्मों-रिवाजों पर आधारित प्रमुख लोक नृत्य इस प्रकार हैं।

’रीना सैला नृत्य‘
बैगा जनजाति का प्रकृति एवं वनों से निकट संबंध है। जिसका बखान इनके लोक संस्कृति में व्यापक रूप से देखने को मिलता है। बैगा जनजाति की माताएं, महिलाएं अपने प्रेम एवं वात्सल्य से देवी-देवताओं और अपनी संस्कृति का गुणगान गायन के माध्यम से उनमें गीत एवं नृत्य से बच्चों को परिचित करने का प्रयास करती है।

साथ ही बैगा माताएं अपने छोटे शिशु को सिखाने एवं वात्सल्य के रूप में रीना का गायन करती हैं। वेशभूषा महिलाएं सफेद रंग की साड़ी धारण करती हैं। गले में सुता-माला, कान में ढार, बांह में नागमोरी, हाथ में चूड़ी, पैर में कांसे का चूड़ा एवं ककनी, बनुरिया से श्रृंगार करती हैं। वाद्य यंत्रों में ढोल, टीमकी, बांसुरी, ठीसकी, पैजना आदि का प्रयोग किया जाता है।

सैला बैगा जनजाति के पुरूषों के द्वारा सैला नृत्य शैला ईष्ट देव एवं पूर्वज देव जैसे-करमदेव, ग्राम देव, ठाकुर देव, धरती माता तथा कुल देव नांगा बैगा, बैगीन को सुमिरन कर अपने फसलों के पक जाने पर धन्यवाद स्वरूप अपने परिवार के सुख-समृद्धि की स्थिति का एक दूसरे को शैला गीत एवं नृत्य के माध्यम से बताने का प्रयास किया जाता है।

इनकी वेशभूषा पुरूष धोती, कुरता, जॉकेट, पगड़ी, पैर में पैजना, गले में रंगबिरंगी सूता माला धारण करते है। वाद्य यंत्रों में मांदर,ढोल, टीमकी, बांसुरी, पैजना आदि का प्रमुख रूप से उपयोग करते हैं। बोली बैगा जनजाति द्वारा रीना एवं शैला का गायन स्वयं की बैगानी बोली में किया जाता है। यह नृत्य प्रायः क्वार से कार्तिक माह के बीच मनाए जाने वाले उत्सवों, त्यौहारों में किया जाता है।

’दशहेरा करमा नृत्य‘
बैगा जनजाति समुदाय द्वारा करमा नृत्य भादो पुन्नी से माधी पुन्नी के समय किया जाता है। इस समुदाय के पुरूष सदस्य अन्य ग्रामों में जाकर करमा नृत्य के लिए ग्राम के सदस्यों को आवाहन करते हैं। जिसके प्रतिउत्तर में उस ग्राम की महिलाएं श्रृंगार कर आती है।

इसके बाद प्रश्नोत्तरी के रूप में करमा गायन एवं नृत्य किया जाता है। इसी प्रकार अन्य ग्राम से आमंत्रण आने पर भी बैगा स्त्री-पुरूष के दल द्वारा करमा किया जाता है। करमा रात्रि के समय ग्राम में एक निर्धारित खुला स्थान जिस खरना कहा जाता है में अलाव जलाकर सभी आयु के स्त्री, पुरूष एवं बच्चे नृत्य करते हुए करते है। अपने सुख-दुःख को एक-दूसरे को प्रश्न एवं उत्तर के रूप में गीत एवं नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करते है।

करमा नृत्य के माध्यम से बैगा जनजाति में परस्पर सामन्जस्य, सुख-दुःख के लेन देन के साथ ही नव युवक-युवतियां भी आपस में परिचय प्राप्त करते है। इस नृत्य में महिला सदस्यों द्वारा विशेष श्रृंगार किया जाता है।

जिसमें यह चरखाना (खादी) का प्रायः लाल एवं सफेद रंग का लुगड़ा, लाल रंग की ब्लाउज, सिर पर मोर पंख की कलगी, कानों में ढार, गले में सुता-माला, बांह में नागमोरी, कलाई में रंगीन चूड़िया एवं पैरों में पाजनी और विशेष रूप से सिर के बाल से कमर के नीचे तक बीरन घास की बनी लड़ियां धारण करती हैं, जिससे इनका सौंदर्य एवं श्रृंगार देखते ही बनता है।

पुरूष वर्ग भी श्रृंगार के रूप में सफेद रंग की धोती, कुरता, काले रंग की कोट, जाकेट, सिर पर मोर पंख लगी पगड़ी और गले में आवश्यकतानुसार माला धारण करते हैं। वाद्य यंत्रों में मांदर, टिमकी, ढोल, बांसुरी, ठिचकी, पैजना आदि का उपयोग किया जाता है।

’करसाड़ नृत्य‘
दण्डामी माड़िया जनजाति नृत्य के दौरान पहने जाने वाले गौर सिंग मुकुट, बस्तर, दशहरा के अंतिम दिनों में चलने वाले विशालकाय काष्ठ रथ को खींचने का विशेषाधिकार और स्वभाव के लिए प्रसिद्ध है। इस नृत्य में दण्डामी माड़िया पुरूष सिर पर कपड़े की पगड़ी या साफा, मोती, माला, कुर्ता या शर्ट, धोती एवं काले रंग का हाफ कोट धारण करते हैं।

वहीं महिलाएं साड़ी, ब्लाउज, माथे पर कौड़िया से युक्त पट्टा, गले में विभिन्न प्रकार की माला और गले, कलाई, पैरों पर बाजार में मिलने वाले सामान्य आभूषण पहनती हैं। करसाड़ नृत्य के लिए पुरूष सदस्य अपने गले में लटका कर ढोल एवं मांदर का प्रयोग करता है। महिलाएं लोहे के रॉड के उपरी सिरे में लोहे की विशिष्ट घंटियों से युक्त ’गुजिड़‘ नामक का प्रयोग करती है।

एक पुरूष सदस्य सीटी का प्रयोग करत है, नृत्य के दौरान सीटी की आवाज से ही नर्तक स्टेप बदलते हैं। नृत्य के प्रदर्शन का अवसर दण्डामी माड़िया जनजाति में करसाड़ नृत्य वार्षिक करसाड़ जात्रा के दौरान धार्मिक उत्सव में करते हैं।

करसाड़ दण्डामी माड़िया जनजाति का प्रमुख त्यौहार है। करसाड़ के दिन सभी आमंत्रित देवी-देवाताओं की पूजा की जाती हैं और पुजारी, सिरहा देवी-देवताओं के प्रतीक चिन्हों जैसे-डोला, छत्रा, लाट बैरम आदि के साथ जुलूस निकालते हैं। जुलूस की समाप्ति के पश्चात् शाम को युवक-युवतियां अपने विशिष्ट नृत्य पोषाक में सज-सवरकर एकत्र होकर सारी रात नृत्य करते हैं।

’मांदरी नृत्य‘
दंडामी माड़िया जनजाति नृत्य के दौरान पहने जाने वाले गौर सिंग मुकुट, बस्तर दशहरा के अंतिम दिनों में चलने वाले विशालकाय काष्ठ रथ को खींचने का विशेषाधिकार और स्वभाव के लिए प्रसिद्ध है। दंडामी माड़िया जनजाति के सदस्य नृत्य के दौरान पहने जाने वाले गौर सिंग मुकुट को माड़िया समुदाय के वीरता तथा साहस का प्रतीक मानते हैं।

इस नृत्य की वेशभूषा में दंडामी माड़िया पुरूष सिर पर कपड़े की पगड़ी या साफा, मोती माला, कुर्ता या शर्ट, धोती एवं काले रंग का हाफ कोट धारण करते हैं। वहीं महिलाएं साड़ी, ब्लाउज, माथे पर कौड़ियों से युक्त पट्टा, गले में विभिन्न प्रकार की माला और गले, कलाई, पैरों पर बाजार में मिलने वाले सामान्य आभूषण पहनी हैं। वाद्य यंत्र मांदरी नृत्य के लिए पुरूष सदस्य अपने गले में लटकाकर ढोल एवं मांदर वाद्य का प्रयोग करते हैं।

महिलाएं लोहे के रॉड के उपरी सिरे में लोहे की विशिष्ट घंटियों से युक्त ‘गुजिड़’ का प्रयोग करती हैं। एक पुरूष सदस्य सीटी का प्रयोग करता है, नृत्य के दौरान सीटी की आवाज से ही नर्तक स्टेप बदलते हैं। यह नृत्य दंडामी विवाह, मेला-मंड़ई, धार्मिक उत्सव और मनोरंजन के अवसर पर किया जाता है। विवाह के दौरान अलग-अलग गांवों के अनेक नर्तक दल विवाह स्थल पर आकर नृत्य का प्रदर्शन करते हैं।

जिसके बदले में उन्हें ‘लांदा’ (चावल की शराब) और ‘दाड़गो’ (महुए की शराब) दी जाती हैं। दंडामी माड़िया जनजाति के सदस्यों का मानना है कि गौर सिंग नृत्य उनके सामाजिक एकता, सहयोग और उत्साह में वृद्धि करता है। वर्तमान में दंडामी माड़िया जनजाति का गौर सिंग नृत्य अनेक सामाजिक तथा सांस्कृतिक आयोजनों में भी प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया जाता है।

विशेष लेख : ललित चतुर्वेदी, उप संचालक जनसंपर्क

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इस बार राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में देश एवं विदशों के जनजातिय परिधान रहेगा आकर्षण का केंद्र… http://revoltnewsindia.com/this-time-in-the-national-tribal-dance-festival-the-tribal-costumes-of-the-country-and-abroad-will-be-the-center-of-attraction/3952/ http://revoltnewsindia.com/this-time-in-the-national-tribal-dance-festival-the-tribal-costumes-of-the-country-and-abroad-will-be-the-center-of-attraction/3952/#respond Sat, 23 Oct 2021 14:33:20 +0000 http://revoltnewsindia.com/?p=3952 राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के दौरान जनजातीय परिधानों, गहनों, शिल्प और डिजाइनों से भी रूबरू होंगे लोग ट्राइबल डांस एरिया और स्पीकर लाउंज के साथ-साथ लाइव शोकेस एरिया, ट्राइबल इंस्पायर्ड…

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राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के दौरान जनजातीय परिधानों, गहनों, शिल्प और डिजाइनों से भी रूबरू होंगे लोग

ट्राइबल डांस एरिया और स्पीकर लाउंज के साथ-साथ लाइव शोकेस एरिया, ट्राइबल इंस्पायर्ड एग्जीबिट, शिल्प-ग्राम और फूड-एरिया का भी होगा
आयोजन के लिए रायपुर सहित प्रदेश के सभी जिलों में चल रही हैं भव्य तैयारियां

रायपुर। रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में 28 अक्टूबर से शुरु हो रहे राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के दौरान लोगों को जनजातीय परंपाओं के परिधानों, गहनों, शिल्पों, डिजाइनों और खान-पान के बारे में भी विस्तार से जनकारियां प्राप्त करने का अवसर मिलेगा।

इस महोत्सव में ट्राइबल डांस एरिया और स्पीकर लाउंज के साथ-साथ लाइव शोकेस एरिया, ट्राइबल इंस्पायर्ड एग्जीबिट, शिल्प-ग्राम और फूड-एरिया का भी निर्माण किया जाएगा।

ट्राइबल डांस एरिया में 28 से 30 अक्टूबर तक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जनजातियों द्वारा विभिन्न जनजातीय नृत्यों की प्रस्तुतियां दी जाएंगी। स्पीकर लाउंज में कला, संगीत, फिल्म, स्वास्थ्य, पर्यटन, खानपान सहित विभिन्न क्षेत्रों में जनजातीय समुदायों को अपने अनुभवों को साझा करने का अवसर मिलेगा।

इस मंच के माध्यम से वे अपने समुदाय में हुए विकास और भविष्य की योजनाओं के बारे में अपने विचारों को भी साझा कर पाएंगे। लाइव शोकेस एरिया में आदिवासियों के कार्यों का प्रदर्शन किया जाएगा। लोग जनजातीय कलाकारों से बातचीत करके उनकी कलाओं और शिल्प के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर पाएंगे।

ट्राइबल इंस्पायर्ड एक्जिबिट में जनजातीय परंपराओं से प्रेरित परिधानों, गहनों, डिजाइनों आदि को प्रदर्शित किया जाएगा। शिल्प-ग्राम में आदिवासी हस्तशिल्प का प्रदर्शन और विक्रय किया जाएगा। फूड एरिया में छत्तीसगढ़ के स्थानीय और जनजातीय खान-पान की परंपराओं से लोग परिचित होंगे।

राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के माध्यम से शासन द्वारा जनजातीय समुदायों और संगठनों के बीच परस्पर सहयोग बढ़ाने और विकास की संभावनाओं का पता लगाने के लिए भी पहल की जा रही है।

इस महोत्सव के माध्यम से ग्रामीण विकास, पर्यावरण और पर्यटन को बढ़ावा देने के भी प्रयास किए जाएंगे। नवा-रायपुर सहित छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के आयोजन की भव्य तैयारियां की जा रही हैं।

इस महोत्सव में भाग लेने के लिए राज्य के सभी जिलों के कलाकारों द्वारा निरंतर अभ्यास किया जा रहा है। इन कलाकारों के चयन के लिए जिलों में कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं।

वर्ष 2019 में छत्तीसगढ़ में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में 25 राज्यों तथा 6 देशों के जनजातीय कलाकारों ने हिस्सा लिया था।

इस बार के महोत्सव में भागीदारी के लिए अब तक 8 देशों से सैद्धांतिक स्वीकृतियां प्राप्त हो चुकी हैं। इनमें युगांडा, नाइजीरिया, उज्बेकिस्तान, स्वाजीलैंड, माले, श्रीलंका, फिलिस्तीन और सीरिया भी शामिल हैं। कोरोना की वजह से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण आए अंतराल के बाद अब वर्ष 2021 में पुनः पूरी भव्यता के साथ आयोजन की तैयारी व्यापक स्तर पर की जा रही है।

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