रायपुर। विश्व पर्यटन दिवस 27 सितम्बर को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 1980 में संयुक्त राष्ट्र पर्यटन संगठन के द्वारा हुई। इसका मुख्य उद्देश्य पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देना है। पर्यटन क्षेत्रों से सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक मूल्यों को बढ़ाने में मदद मिलेगी। आजकल सभी अपने कामों में इतने व्यस्त हैं कि अपने परिजन, दोस्तों से मुलाकात नहीं कर पाते हैं, ऐसे में पर्यटन क्षेत्रों में जाकर अच्छा समय व्यतीत किया जा सकता है। पर्यटन क्षेत्रों में बढ़ावा देकर हम अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकते हैं।
जिले में ऐसे कई पर्यटन क्षेत्र हैं जो लोगों का मन मोह लेते हैं। माँ दंतेश्वरी मंदिर जो शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यह मंदिर शंखिनी-डंकिनी नदी के संगम पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सती के दांत यहां पर गिरा, इस वजह से यहां का नाम दंतेवाड़ा पड़ा। स्थानीय लोगों द्वारा दंतेश्वरी माँ को कुल देवी का दर्जा दिया गया है। माँ के दर्शन के लिए यहां पर पुरुषों को धोती पहनना अनिवार्य है। वहीं महिलाएं साड़ी एवं सलवार में माता का दर्शन कर सकती हैं।
जिला मुख्यालय से लगभग 15 किमी दूर फरसपाल नामक स्थान से कुछ ही दुरी पर हजारों फीट ऊँची ढोलकल पहाड़ी पर गणेश जी की प्रतिमा स्थित है। गणेश जी की इस प्रतिमा में ऊपरी दांयें हाथ में फरसा, ऊपरी बांयें हाथ में टूटा हुआ एक दन्त, निचली दांये हाथ में अक्षमाला व मूर्ति के निचली बांयें हाथ में मोदक धारण किये हुए हैं। किवदंती है की परशुराम के फरसा से गणेश जी का दन्त टूटा था, इसलिए इस जगह का नाम फरसपाल पड़ा। पहाड़ों के बीच ऊंचाई पर गणेश की असीम प्रतिमा मनमोहक लगती हैं।
जिला मुख्यालय से लगभग 34 किमी दूर बारसूर स्थित मामा-भांजा मंदिर प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। कहा जाता है कि मंदिर को बनाने वाले दो शिल्पकार मामा-भांजा थे, इसीलिए इस मंदिर का नाम मामा-भांजा पड़ा। बारसूर में स्थित बत्तीसा मंदिर जहां शिवलिंग की मूर्ति स्थापित है। बत्तीस खम्भों के सहारे खड़ा यह मंदिर देखने में बहुत नायाब लगता है। वहीं गणेश मंदिर जो बारसूर में ही स्थित है।
जिसकी ऊंचाई लगभग 5 एवं 7 फीट की यह जुड़वा मूर्ति लोगों का मन मोह लेती है। वहीं बाजार स्थल में चन्द्रादित्य मंदिर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण चन्द्रादित्य राजा ने करवाया था। इसलिए इसका नाम चन्द्रादित्य मंदिर पड़ा, जो अपने आप में अनुपम दृश्य लगता है। इस मंदिर के बनावट में खजुराहो की झलक दिखती हैं।
बारसूर से लगभग 5 किमी आगे चलने पर मुचनार एक ऐसा स्थल है जो पिकनिक स्पॉट के रूप में उभर कर आया है। यह इंद्रावती नदी के किनारे स्थित है जिसकी प्राकृतिक सुंदरता सभी को इतनी सुहानी लगती है कि पर्यटक अपना अधिक समय इस सुन्दर नजारे को देखने में लगाते हैं।
बैलाडीला की पहाड़ी शुद्ध लौह अयस्क के लिए मशहूर है। यहां से लौह अयस्क जापान को निर्यात किया जाता है। नंदिराज पर्वत की आकृति बैल की कूबड़ की तरह प्रतीत होती है, इस वजह से इसका नाम बैलाडीला पड़ा। इन पहाडि़यों के ऊपर ही आकाश नगर है, जिसे हम एक हिल स्टेशन के रूप में देख सकते हैं।
अधिक ऊंचाई पर होने के कारण पहाडि़याँ बादलों से ढकी हुई होती है। वहीं बैलाडीला की पहाडि़यों में ही झारालावा जलप्रपात है जो एक बहुत ही खूबसूरत झरना है। प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा हुआ यह झरना पर्यटकों का मन मोह लेती है। पहाडि़यों से भरे घने जंगल में यह दृश्य सैलानियों का मन आनंदित कर देता है। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण कई किलोमीटर पैदल चल कर इस क्षेत्र तक पंहुचा जा सकता है।
वहीं जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर कुआकोंडा विकासखण्ड के ग्राम पालनार के समीप फूलपाड़ जलप्रपात स्थित है। जिसकी मनोरम एवं प्रकृतिमय वातावरण में कल-कल करते झरने की ध्वनि मधुरमय सी लगती है।
दंतेवाडा जिला पर्यटन स्थल की दृष्टि से छत्तीसगढ़ का सबसे समृद्ध जिला हैI प्राकृतिक सौन्दर्यता से परिपूर्ण और ऐतिहासिक धरोहरों से समृद्ध यहां के पर्यटन स्थलों में लगभग सालभर पर्यटकों का आगमन होता हैI
पर्यटन स्थान ही नही बल्कि यहां कि आदिवासी संस्कृति भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैI यही कारण है कि यहां साल दर साल पर्यटकों संख्या में लगातार इजाफा हो रहा हैI वही छत्तीसगढ़ सरकार भी प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण योजना संचालित कर रही हैI जिसके परिणाम स्वरुप प्रदेश में स्वदेशी के साथ विदेश पर्यटकों की संख्या बढ़ी हैI