सआदत हसन मंटो : जन्मदिन विशेष

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By Santosh Poudyal

साहित्य में जब भी अफसानों कि या फिर कहानी की बात होती है तब सआदत हसन मंटो का नाम अपने आप सामने आ जाता है। वे उर्दू के ऐसे विश्वविख्यात एवं प्रसिद्ध अफसाननिगार (कहानीकार) थे जिनके बिना अफसाने या फिर कहानी की बात करना अपूर्ण होगा। मंटो का जन्म 11 मई, 1912 को जिला लुधियाना के गांव पपड़ोदी, शमराला के पास हुआ। मंटो के पिता गुलाम हसन मंटो कश्मीरी थे। मंटो के जन्म के बाद वे अमृतसर चले गए और वहां एक कुचा वकीलां नाम के मोहल्ले में रहने लगे। मंटो की शुरूआती पढाई घर से ही हुई। इस उपरांत 1921 में उन्हें ऐम.ऐ.ओ. मिडल स्कूल में चैथी जमात में दाखिल किया गया। मंटो का पढाई लिखाई में खासा ध्यान नहीं रहता था, यही वजह है कि वे मैट्रिक की परीक्षा में तीन बार फेल हो गए। बाद में 1931 में उन्होंने मैट्रिक पास की। उसके बाद मंटो ने हिन्दू सभा काॅलेज में ऐफ.ए. में दाखिला लिया।


जलियांवाला बाद हत्याकंाड की घटना ने मंटो के मन में गहर आघात किया। इस संदर्भ में मंटो ने अपनी पहली कहानी ‘‘तमाशा‘‘ लिखी। 1932 में मंटो के पिता की मौत हो गयी जिसके कारण उन्हें बहुत कठिन समय से गुजरना पड़ा। मंटो की जिंदगी में 1933 के दौरान बड़ा मोड़ उस वक्त आया जब उनकी मुलाकाल प्रसिद्ध लेखक अब्दुल बारी अलिग के साथ हुई। उन्होंने मंटो को अंग्रेजी और फ्रंासीसी और रूसी साहित्य पढ़ने की प्रेरणा दी।


मंटो को भी अपनी विलक्षण कला का बखूबी एहसास था, यही कारण था कि उन्होने यह लिखा, ‘‘सआदत हसन मर जाएगा, मगर मंटो जिंदा रहेगा।‘‘


आमतौर पर लेखक कोई महान व्यक्ति या बड़ा आदमी होता है, जिसकी जमाने में इज्जत होती है, लेकिन मंटो एक महान लेखक होने के बावजूद भी एक ‘‘बदनाम‘‘ लेखक के रूप में जाने गए। क्योंकि उनके लेख समाज की प्रत्यक्ष समस्याओं को खुली चुनौती देते थे, वे किसी भी प्रकार की बात को लिखने में संकोच नहीं करते थे, एक बार का जिक्र आता है कि मंटो को उनके एक लेख की वजह से अदालत में पेश होना पड़ा था। मंटो के खिलाफ वकील ने कोर्ट में कहा था, ‘‘इस लेख में मंटो ने कुछ ऐसे शब्द लिखे हैं जो कि किसी सभ्य समाज को शोभा नहीं देते।‘‘ लेकिन मंटो ने जवाब में कहा, ‘‘अगर ये सभ्य समाज इन शब्दों का खुलेआम प्रयोग कर सकता है तो मेरे इन शब्दों को लेख में लिखने पर क्या हर्ज है।‘‘ वे समाज के उसका हू ब हू चेहरा दिखाने से कतराते नहीं थे। उनका कहना था कि अगर मेरे अफसाने ना काबिल ए बर्दाश्त हैं तो जान लो कि ये जमाना भी ना काबिल ए बर्दाश्त है। उनके उपर अक्सर कहानियों के जरिये अश्लीलता फैलाने का आरोप लगता रहा, पर वे बेबाक लिखते रहे।


बंटवारे का दर्द हमेशा उन्हें सालता रहा. 1948 में पाकिस्तान जाने के बाद वो वहां सिर्फ सात साल ही जी सके और 1912 में भारत के पूर्वी पंजाब के समराला में पैदा हुए मंटो 1955 में पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब के लाहौर में दफन हो गए.

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